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जिंदगी

जिंदगी है बहुत हसीन यारों इसे जीना सीखो कभी हंसना तो कभी रोना सीखो सुख और दुख है इसके दो भाई जो सदा इंसान के साथ बनकर रहते है हमराही जिंदगी में बहुत मिलेंगे ऐसे लोग जो कहेंगे तुम्हें अपना दोस्त यारों ये जिंदगी तुम्हारी लेती रहती है परीक्षा जो तुम्हें दिखता है कभी धोखा , तो कभी समस्या यारों जो इस मुश्किल को कर लेता है पार, वहीं कहलाता है सुपरस्टार जिंदगी बहुत हसीन है यारों इसे जीना सीखो ।

लिखने का मन करता है

बहुत कुछ है मन में लिखने का दिल करता है पर अगर मैंने बोला सच तो शायद मैं भी विद्रोही कहलाऊंगा मुझे भी मिलेगा देश निकाला तो शायद मैं भी तड़ीपार कहलाऊंगा बहुत कुछ है मन में कहन...

समकालीन संदर्भ में 'अंधेर नगरी' की प्रासंगिकता

व्यक्ति का मूल स्वभाव और प्रवृतियाँ हर युग में एक-सी ही रही हैं। सतयुग में भी कलयुगी स्वभाव वाले थे और कलयुग में भी सतसुगी स्वभाव वाले सज्जन मिल जाते है। अच्छे-बुरे लोगों का संख्यात्मक अनुपात कम-अधिक हो सकता है पर यह नहीं हो सकता कि किसी युग में उन्हें आधार बना कर लिखा गया साहित्य दूसरे समय या स्थान या स्थान के लिए अनुपयोगी हो । साहित्य तो कालजयी होता है और फिर भारतेन्दु के साहित्य का सन्दर्भ तो वही है जो हमारे आज का समय है। राजनीतिक स्थितियों अवश्य बदली है और इस कारण कुछ सामाजिक आर्थिक और धार्मिक आधार परिवर्तित हुए है - शेष सब कुछ वैसा ही है, इसलिए 'अंधेर नगरी' पूर्ण रूप से समकालीन संदर्भ में प्रांसगिक है, जिसे निग्नलिखित आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है - 1. राजनीतिक संदर्भ - भारतेन्दु ने चौपट्ट राजा के माध्यम से राजनीतिक भ्रष्टता, अदूर दृष्टि और कौशल हीनता को प्रकट किया था । वर्तमान समय में भी उनके राजनीतिज्ञ, सरकारी वर्ग के अधिकारी और उच्च पदों पर आसीन मठाधीश इसी वर्ग से सम्बंधित हैं। उनकें द्वारा किए गए मूर्खतापूर्ण कार्य भी गुमराह जनता के लिए आदर्श बन जाते हैं जनता ...

मेरी पुकार

मेरा प्यारा देश जल रहा संघर्षों की ज्वाला में, नित-नूतन महफ़िल सजती है सत्ता की मधुशाला में. कोई फर्क नहीं पड़ता हलधर का कमल सा पंजा है, भोली जनता की गर्दन पर सबने कसा सिकंजा है. ...

ख़यालों का क्या करूं

मेरे ख़ुदा मैं अपने ख़यालों का क्या करूँ अंधों के इस नगर में उजालों का क्या करूँ चलना ही है मुझे मेरी मंज़िल है मीलों दूर मुश्किल ये है कि पाँवों के छालों का क्या करूँ दिल ही ...

वो कलाम था - कलाम सर को समर्पित

धरती पर जो जन्मा वो इंसान था गरीबी ने जिसे सींचा वो इंसान था मेहनत से जिसने नाम कमाया वो इंसान था पर सबको रुला के छोड़ गया वो ‘कलाम’ था भारत माँ भी रो पड़ी जिसके लिए वो कलाम था ना ...

कॉलेज का पहला दिन

अभी 3 दिन पहले ही 21 जुलाई बीती तो और फिर फेसबुक पर पुरानी फोटो आ गई जिस से फिर से मेरे कॉलेज का प्रथम दिन याद आ गया । 21 जुलाई 2011 अाज भी याद है वो दिन । अरे उस दिन को कैसे भूल सकता हूं , मेरे कॉलेज का पहला दिन । सबसे पहले बता दूं जब मैंने कॉलेज में एडमिशन लिया उस कॉलेज के बारे में लोगों की अवधारणा ठीक नहीं थी । छात्रों की नजर में मेरा कॉलेज मोती लाल नेहरू सांध्य कॉलेज अच्छे कॉलेज में नहीं आता था । आता भी कैसे एक तो इवनिंग कॉलेज यानी सिर्फ 4 घंटे मिलते थे । कोई ज्यादा मौज-मस्ती नहीं सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई और ऊपर से ज्यादा मनमोहक लड़कियां भी कम दाखिला लेती थी जिस वजह से भी छात्रों का मन कम ही लगता था । लड़कियों की बात इसलिए की क्योंकि कॉलेज के बात हो और लड़कियों को शामिल न किया जाए तो शायद बेमानी होगी । मैं भी उनमें से ही था पर थोड़ा शर्मिला था । लड़कियों से बात करने से कतराता था । बात करते करते मुद्दे से भटक गया । अब आते है सीधे कॉलेज के पहले दिन की उस मीठी सी याद पर । 20 जुलाई से ही मैं ललायित था कॉलेज जाने को मन हिचकोले मार रहा था । तरह-तरह के प्लान मन में बन रहे थे कि ये करूं...