कॉलेज का पहला दिन

अभी 3 दिन पहले ही 21 जुलाई बीती तो और फिर फेसबुक पर पुरानी फोटो आ गई जिस से फिर से मेरे कॉलेज का प्रथम दिन याद आ गया ।
21 जुलाई 2011 अाज भी याद है वो दिन । अरे उस दिन को कैसे भूल सकता हूं , मेरे कॉलेज का पहला दिन । सबसे पहले बता दूं जब मैंने कॉलेज में एडमिशन लिया उस कॉलेज के बारे में लोगों की अवधारणा ठीक नहीं थी । छात्रों की नजर में मेरा कॉलेज मोती लाल नेहरू सांध्य कॉलेज अच्छे कॉलेज में नहीं आता था । आता भी कैसे एक तो इवनिंग कॉलेज यानी सिर्फ 4 घंटे मिलते थे । कोई ज्यादा मौज-मस्ती नहीं सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई और ऊपर से ज्यादा मनमोहक लड़कियां भी कम दाखिला लेती थी जिस वजह से भी छात्रों का मन कम ही लगता था । लड़कियों की बात इसलिए की क्योंकि कॉलेज के बात हो और लड़कियों को शामिल न किया जाए तो शायद बेमानी होगी । मैं भी उनमें से ही था पर थोड़ा शर्मिला था । लड़कियों से बात करने से कतराता था । बात करते करते मुद्दे से भटक गया ।
अब आते है सीधे कॉलेज के पहले दिन की उस मीठी सी याद पर ।
20 जुलाई से ही मैं ललायित था कॉलेज जाने को मन हिचकोले मार रहा था । तरह-तरह के प्लान मन में बन रहे थे कि ये करूंगा ,कॉलेज जाकर वो करूंगा । इसी उधेड़बुन में सो गया । अगले दिन यानी 21 जुलाई एक एक मिनट काटना मुश्किल हो रहा था । किसी तरह 2 बजा । ईवनिंग कॉलेज था तो वेलकम प्रोगाम 4 बजे शुरू होना था । 2 बजे घर से निकला और बस पकड़ के 3 बजे तक कॉलेज पहुंचा । हालांकि जैसा स्वागत आज कल होता है पहले वैसा स्वागत नहीं करते थे सीनियर छात्र या छात्र नेता ।
अगर कॉलेज की बातें हो और छात्र नेताओं की बात ना कि जाएं तो ऐसा लगेगा योकी शायद एक बहुत महत्वपूर्ण चीज छोड़ दी । क्योंकि कई बार छात्र नेता के रूप में अच्छे दोस्त या भाई मिल जाते है ।

कॉलेज पहुंच जाने के बाद काफी देर बाहर खड़ा होकर सोचता रहा । क्योंकि मैं अकेला था कोई दोस्त भी नहीं पहली बार अकेला गया था । वो भी कॉलेज । किसी तरह कॉलेज में प्रवेश किया, देखा तो मेरी ही तरह के काफी छात्र-छात्राएं जिनका एडमिशन हुआ है कोई अपने परिवार के साथ तो कोई दोस्त के साथ आ रहा है । किसी तरह मुख्य भवन में प्रवेश किया । मुख्य भवन के बगल वाले पार्क में ही स्वागत समारोह का आयोजन किया जा रहा था । मुख्य भवन जहां खड़ा हुआ उस जगह का नाम सुंदरी चौक था जो कि मुझे बाद में पता चला । सुंदरी चौक यानी यहां पर हर समय कोई ना कोई गोरी हसीना आपको मिल जाएगी । शायद इसलिए ही इसका नाम सुंदरी चौक पड़ा होगा हालांकि इसके इतिहास में नहीं जाऊंगा । समय भी बहुत धीरे धीरे बीत रहा था । मैं एक कोने में अकेला खड़ा होता हूं और चुपचाप से कॉलेज के नज़ारे ले रहा होता हूं ।
3:30 के आसपास एक सीनियर और उनके दोस्त मेरे पास आते है , अपना नाम वो गौतम कश्यप और नीरज कांत बताते है । आज भी गौतम भाई मेरे बड़े भाई व दोस्त और नीरज कांत भी काफी अच्छे दोस्तों में से एक है ।

वो आकर नाम कोर्स आदि पूछते है और थोड़ी बातचीत करके अपना फोन नंबर देकर चले जाते है । हालांकि मेरे अंदर घबराहट और एक अजीब सा डर अभी भी था, 3:50 pm पर मैं मुख्य भवन से निकलकर आयोजन वाले पार्क में लगी कुर्सियों में एक पर आकर बैठ जाता हूं ।अब भी मेरे मन में काफी उथल-पुथल चल रही होती है कि अगर बगल में लड़की बैठ गई तो क्या बात करूंगा या कैसे बात करूंगा । लेकिन मन ही मन ये बोल रहा था कि हे भगवान बगल में लड़की मत बैठाना । धीरे धीरे सीट भरती जा रही थी , तभी मेरे बगल में एक लड़का आकर बैठ गया । मैंने मन ही मन राहत की सांस ली , उसका नाम नील था वो मेरे साथ एडमिशन के समय भी मेरे पीछे था उस समय भी बात हुई थी चलो मन में एक तसल्ली हुई कि कोई तो जान-पहचान वाला मिला । धीरे धीरे बात होने लगी हमारी । हमने एक दूसरे के नंबर लिए । फिर मनीष खन्ना नाम का लड़का मिला जो बाद में काफी अच्छा दोस्त बन गया,आज भी है, हालांकि नील से अब कोई कॉन्ट्रेक्ट नहीं है । विनय ये नाम तो रह ही गया स्कूल से साथ था एडमिशन भी साथ में लिया पर पहले दिन ही कॉलेज साथ नहीं आया । गुस्सा तो खूब था पर माफ किया । प्रोग्राम शुरू हो गया था कॉलेज की बातें पता चल रही थी । सब अध्यापक का परिचय हो रहा था । लेकिन मेरा और नील का ध्यान प्रोगाम में कम अपनी बातों में ज्यादा था, अरे एक नाम ओर याद आया मनीष मेरे दूसरी साइड बैठा था इंग्लिश आनर्स का था , आज सिर्फ फेसबुक दोस्त रह गया है वैसे कॉलेज के कुछ दिन के बाद सिर्फ जान-पहचान वाला रह गया । पर उस दिन तो 3 की जोड़ी बन गई । काफी हंसी मजाक कर रहे थे । हालांकि प्रोगाम चल रहा था पर हमें मतलब नहीं था । धीरे-धीरे समय बीत गया प्रोगाम खत्म हो गया , हम भी कैंटीन की तरफ अपने कदम रखने लगे थे । कैंटीन गए तो चाउमिन और समोसे लिए और मिलकर खाया । हालांकि अब थोड़ा मन का डर और घबराहट खत्म हो रही थी पर अजीब सा मन के अंदर कशमकश थी पता नहीं वो किस चीज की थी । शाम के 6 बजे मस्ती करने के बाद हम अपने अपने घर की तरफ अग्रसर हुए । मन संतुष्ट था कहां ये था कि कॉलेज में कोई दोस्त मिलेगा कि नहीं कहां 2सीनियर और 2 साथ वालों से अच्छी बातचीत हो गई थी और सबसे बड़ी बात बगल में लड़की भी आकर नहीं बैठी । यहीं सब सोचते सोचते घर पहुंच गया ।
यहीं था मेरा कॉलेज का पहला दिन कैसा लगा जरूर बताना ताकि आगे लिख सकूं ।

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