ख़यालों का क्या करूं
मेरे ख़ुदा मैं अपने ख़यालों का क्या करूँ
अंधों के इस नगर में उजालों का क्या करूँ
चलना ही है मुझे मेरी मंज़िल है मीलों दूर
मुश्किल ये है कि पाँवों के छालों का क्या करूँ
दिल ही बहुत है मेरा इबादत के वास्ते
मस्जिद को क्या करूँ मैं शिवालों का क्या करूँ
मैं जानता हूँ सोचना अब एक जुर्म है
लेकिन मैं दिल में उठते सवालों का क्या करूँ
जब दोस्तों की दोस्ती है सामने मेरे
दुनिया में दुश्मनी की मिसालों का क्या करूँ ।
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