रेप को विभाजित करती अतिवादी लोगों की मानसिकता / The mindset of extremists dividing rape
भगवान ने पुरुष और महिला की शारीरिक संरचना भिन्न इसलिए बनाई कि यह संसार आगे बढ़ सके। लेकिन परिवेश में घुलती अनैतिकता और बेशर्म आचरण ने पुरुषों के मानस में स्त्री को मात्र भोग्या ही निरूपित किया है। यह आज की बात नहीं है अपितु बरसों-बरस से चली आ रही एक लिजलिजी मानसिकता है जो दिन-प्रतिदिन फैलती जा रही है।स्त्री शरीर को लेकर बने सस्ते चुटकुलों से लेकर चौराहों पर होने वाली छिछोरी गपशप तक और इंटरनेट पर परोसे जाने वाले घटिया फोटो से लेकर हल्के बेहूदा कमेंट तक में अधिकतर पुरुषों की गिरी हुई सोच से हमारा सामना होता है। अक्सर टीवी डिबेट में या कहीं सुनने को मिल जाता है कि रुषों का बढ़ता तनाव भी बलात्कार का कारण होता है और महिलाओं के प्रति बढ़ता अपमानजनक माहौल भी पुरुष के दुस्साहस को बढ़ाने में उत्प्रेरक का काम करता है। हमारी सामाजिक मानसिकता भी स्वार्थी हो रही है। फलस्वरूप किसी भी मामले में हम स्वयं को शामिल नहीं करते और अपराधी में व्यापक सामाजिक स्तर पर डर नहीं बन पाता। पहली बार निर्भया के समय में सामाजिक रोष प्रकट हुआ। वरना तो ना सोच बदली है ना समाज। अभी भी हालात 70 प्रतिशत तक शर्मनाक हैं।...