बेरोजगारी एक समस्या
बहुत दिनों से समाचार में अखबार और टीवी में देख रहा हूं कि देश में नौकरियों की कमी है, चाय पकौड़ा रोजगार पता नहीं क्या-क्या मज़ाक मीडिया में मोदी जी के भाषण के बाद चला लेकिन किसी ने भी हकीकत दिखाने की हिम्मत नहीं की लेकिन आज खबर पढ़कर मन में कुछ सवाल उठे आमतौर पर मैं कुछ कहता नहीं हूं परंतु आज कहने के लिए मजबूर हूं ,क्योंकि कुछ समय बाद मैं भी इसी श्रेणी में शामिल हो जाऊंगा । देश में पहले ही नौकरियों की बहुत ज्यादा मांग है। ऐसे में मोदी सरकार की 4 बैंकों को मिलाकर एक बड़ा बैंक मिलाने की प्लानिंग कर रही है लेकिन शायद मोदी सरकार यह भूल गई कि 4 बैंकों को मिलाकर एक बैंक बनाने से इन बैंकों का घाटा तो कम हो जाएगा ,परंतु जो लोग इन बैंकों में काम करते हैं उनमें से बहुत लोगों की नौकरियां चली जाएंगी यानि बेरोजगारी तो पहले से ही है उसमें कुछ बेरोजगार और जुड़ जायेंगे । आखिर कब तक ऐसे ही जो नौकरियां बची हुई हैं। उनको खत्म किया जाएगा अभी हाल में ही एक फैसला आया था जिसमें पिछले 5 साल से जो सरकारी पदों को नहीं भरा गया था उनको मोदी सरकार ने खत्म करने का एलान किया था । आखिर ऐसा क्या हो गया है कि देश में नौकरियों का अकाल पड़ा हुआ है नौकरियां होते हुए भी नौकरी नहीं लग रही है। देश में केवल दिल्ली की बात करें तो हर साल लगभग 50,000 बच्चे ग्रेजुएशन पास करते हैं । परंतु यह भी एक सिर्फ डिग्री मात्र रह जाती है क्योंकि उसके बाद यह भी बेरोजगारी की लिस्ट में शामिल हो जाते हैं । इनको ग्रेजुएशन की डिग्री नहीं मिलती,मिलता है बेरोजगार होने का सर्टिफिकेट क्योंकि सरकार के पास तो नौकरी ही नहीं है और प्राइवेट सेक्टर सिर्फ इनको 6 से 7000 की नौकरी ही देते हैं आपको क्या लगता है कॉलेज में दिन रात एक करके पढ़कर टॉप करने वाला छात्र प्राइवेट सेक्टर में क्या 7000 की नौकरी करने जाएगा या औसत प्रतिशत लाने वाला छात्र क्या केवल 7000 की नौकरी के लिए उसने ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की थी आज का दौर ऐसा है सच्चाई भी यही है कि देश में नौकरियां नहीं है देश का नौजवान भटक भटक रहा है उसकी डिग्रियां किसी काम नहीं आ रही है ऐसे में सरकार की तरफ आश लगाता है लेकिन शायद सरकार भी उसकी आस को तोड़ने के सिवा कुछ नहीं कर रही है।
सिर्फ मोदी सरकार के समय में या सिर्फ पिछले 5 साल में ही नौकरियों की जबरदस्त कमी नहीं हुई है। अगर ऐसा कहूं तो गलत होगा क्योंकि देश में पिछले 20 सालों से नौकरियां निरंतर कम ही होती जा रही है। कांग्रेस के पिछले 10 साल के कार्यकाल में भी बेरोजगारी की दर काफी ऊंची रही है। ऐसे में मैं अगर यह कहूं कि मोदी सरकार ही सिर्फ जिम्मेदार है तो यह कहना गलत होगा क्योंकि इसका इसके जिम्मेदार तो हर वह सरकार है चाहे वह राज्य की हो चाहे वह केंद्र की हो सब सरकारें देश के युवाओं को रोजगार देने में नाकामयाब रही है। किसी को भी जनता की इस समस्या से मतलब नहीं है ,सारी सरकारें तो बस अपनी-अपनी पार्टियों के लिए राजनीति ही कर रही हैं ,चाहे वह पक्ष हो चाहे वह विपक्ष हो कोई भी एकजुट होकर दो वक्त की रोटी के इंतजाम के लिए एक सुलभ नौकरी उपलब्ध नहीं करवा पाया है । आज देश की तमाम राजनीतिक दलों को यह सोचना चाहिए कि देश के युवा जो निरंतर ग्रेजुएशन ,पोस्ट ग्रेजुएशन ,एमफिल , पीएचडी और इंजीनियरिंग, डॉक्टर और भी कई तरह की डिग्रियां ले रहे हैं उनको नौकरी का हक मिलना चाहिए जैसे संविधान में 6 मौलिक अधिकार दिए गए हैं , वैसे ही नौकरी का अधिकार भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए ताकि देश के हर नागरिक या देश के हर परिवार के सदस्य को एक सदस्य को नौकरी हासिल हो ताकि उस परिवार का खर्च चल सके ।
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