पद्मावती एक विवाद
पद्मावती आई तो थी मनोरंजन के लिए, मगर उसे क्या पता था कि उसके आने से यहां के लोगों की भावनाएं आहत होगी । ठेस भी क्या बला है कि जब चाहो, तभी लगती है । वरना इतिहास के पन्नों में दबी, धूल में सनी पदमावती कहां पड़ी थी,किसे पता था ? किसी ने इससे पहले उसका जिक्र तक किया था ? जायसी की रचनाओं और राजस्थान के इतिहास से उपजी पदमावती ने जैसे आज के मुख्य मुद्दों शिक्षा , रोजगार , भुखमरी जैसे सभी मुद्दों को हमने छोड़ दिया । हमारे बीच आज भी कई पदमावती है,जो अपनी अस्मिता के लिए चीख - चिल्ला रही है । तब हमें कोई ठेस नहीं पहुंचती । महिलाओं के भोंडे विज्ञापनों से भी हमारी भावना आहत नहीं होती । रोज़ होते बलात्कार , हत्या जैसे क्राइम देख कर भी हमारी भावना आहत नहीं होती । इस देश को बस हर मुद्दे पर नुकसान पहुंचने की बात होती है । तोड़फोड़ करना , गाड़ी जलाना। कभी आरक्षण के नाम पर तो कभी किसी नाम पर लेकिन कोई भी देश की समस्या कैसे हल हो उसके बारे में नहीं सोचेगा , उसके लिए सिर्फ और सिर्फ सरकार बैठी है और सरकार भी सिर्फ वहीं काम करेगी जो उसकी हिसाब से ठीक होगा और उसको ही पूरा नाम होगा वरना वो भी नहीं होगा । आखिर क्यों ?
हल्ला तो तब होता है , जब 'तमाशे ' पर सियासत से लेकर सरकार तक की भोहें तन जाती हैं । इससे पहले कि इतिहास से छेड़छाड़ हो, हे पदमावती तुम लौट जाओ । तुम्हारी नाक कटे ना कटे हमारी जरूर कट जाएगी ।
इस देश में आज भी लाखों लोग भूखे सोते है क्या ये जो संगठन जाति के नाम पर ठेकेदार बने हुए है जो केवल नाक काटने के लिए 1 करोड़ तक देने के लिए तैयार बैठे है या जो तोड़फोड़ करके शहर में बंद बुलवाते है वो बताएंगे की उन्होंने कितने भूखे पेटों को भोजन उपलब्ध करवाया । उनका जवाब होगा किसी को नहीं और अगर करवाया भी होगा तो सिर्फ और सिर्फ पब्लिसिटी के लिए । हमारे देश की सबसे बड़ी दिक्कत ही यही है कि सब बस ठेकेदार बनना चाहते है क्योंकि मददगार नहीं बनना चाहता । अगर इसी पदमावती से इतना ऐतराज तो इसका हल बातचीत करके सामान्य रूप से सुलझाया जा सकता था लेकिन हमारे देश के ठेकेदारों की समस्या ही है कि जब तक किसी चीज का मीडिया में इश्यू ना बने उसके ऊपर बवाल ना हो तब तक वो समस्या का समाधान ही नहीं ढूंढेगा कोई । आज भी बहुत महिलाएं किसी ना किसी सामाजिक आर्थिक समस्या से ग्रसित है लेकिन उनकी मदद के लिए कोई तैयार नहीं होगा क्योंकि तब मर्द की बेज्जती होने का डर होगा । दिल्ली में हुई 16 दिसंबर की घटना के समय सबने खूब महिला सुरक्षा की बात की पर उसके बाद क्या हुआ ? सिस्टम थप ? फिर वहीं सब होने लगा जो पहले होता था । इस देश के लोग तभी क्यों जागते हैं जब कुछ गलत हो जाता है ?
अब एक रोचक बात ओर बताता हूं हमारे देश का इतिहास तभी हमें याद आता है जब उस पर बवाल होता है और सबसे मज़े की बात जो लोग इसके विरोध में बोलते नजर आते है उनको तक इतिहास नहीं पता होता वो बेचारे खुद गूगल बाबा के सहारे ज्ञानी बने होते है ।
आज एक प्रश्न करता हूं क्यों ना हम गरीबी दूर करने के लिए आंदोलन करें ?
क्यों ना हम महिलाओं की सुरक्षा के लिए समाज को तैयार करें ?
क्यों ना हर छात्र को पढ़ने का हक दें आर्थिक या किसी भी रूप से ?
क्यों ना ग्रामीण क्षेत्रों में होते अंधविश्वसों के खिलाफ आवाज बुलंद करें ?
क्यों ना हम हर इंसान को 2 वक़्त की रोटी दिलाने का प्रयास करें ?
और सबसे बड़ी बात क्यों ना हम सबको ये अहसास दिलवाएं की हम सब इंसान है कोई छोटा या बड़ा नही है ।
हर संगठन और समाज से विनती करता हूं कि बस बहुत हुआ तोड़फोड़ , धमकी अब आओ मिलकर देश बनाए । आप जिस भी समाज को प्रस्तुत करते है वहां की समस्या सुलझाने में देश की मदद कीजिए । बच्चों को शिक्षा , महिलाओं को सम्मान , भूखे को रोटी , बेसहारा को सहारा दीजिए और तब उनको अपना इतिहास बताइए ताकि किसी को बवाल होने के बाद गूगल ना करने पड़े और अधूरी जानकारी ना प्राप्त हो।
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