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Showing posts from August, 2017

मेरी पुकार

मेरा प्यारा देश जल रहा संघर्षों की ज्वाला में, नित-नूतन महफ़िल सजती है सत्ता की मधुशाला में. कोई फर्क नहीं पड़ता हलधर का कमल सा पंजा है, भोली जनता की गर्दन पर सबने कसा सिकंजा है. ...

ख़यालों का क्या करूं

मेरे ख़ुदा मैं अपने ख़यालों का क्या करूँ अंधों के इस नगर में उजालों का क्या करूँ चलना ही है मुझे मेरी मंज़िल है मीलों दूर मुश्किल ये है कि पाँवों के छालों का क्या करूँ दिल ही ...