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आखिर कब आजाद घूम पाएगी महिलाएं / When will women be able to move freely?

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16 दिसंबर जब भी ये तारीख आती है तो दिमाग में 2 तस्वीर सामने आती हैं, एक भारत - पाकिस्तान युद्ध में भारत की विजय की और दूसरी 2012 में हुए भयावह निर्भया कांड की । जब भी उस बारे में सोचता हूँ तो आत्मा कांप जाती हैं। 16 दिसंबर की सर्द रात, वीरान-सी चलती सड़क और नीचे चुभती घास और भी न जाने क्या-क्या। नीचे जो चुभ रहा था, उसकी तकलीफ़ उतनी ज्यादा नहीं थी जितनी उसकी जो उसके शरीर पर चुभ रहा था। 5 फुट 5 इंच की लंबाई वाला उसका अपना शरीर भी इतना ही बड़ा लग रहा था जितना बड़ा वह सड़क । आम तौर पर एक शरीर में इतनी ही जगह होती है जितनी कि एक दूसरे शरीर के लिए काफी हो। अगर किसी लड़की की रज़ामंदी के बगैर कोई उसे छुए, तब उसे कितनी खीझ होती है, इसका अंदाज़ा लड़कियां तो लगा सकती हैं मगर पुरुष शायद नहीं लगा सकें। और अगर कोई किसी लड़की के बार-बार मना करने के बावज़ूद, उसकी ना को बिना कोई तवज़्जो दिए, बस अपनी इच्छा और मतलब के मुताबिक उसके शरीर का इस्तेमाल करे, तब उसकी खीझ और पीड़ा किस कदर बढ़ जाती होगी, ज़रा कल्पना करके देखिए। आखिर एक बार फिर हर साल की तरह 16 दिसंबर फिर आ गई। लेकिन लेकिन शायद ही उस 16 दिसम्बर 2012...