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Showing posts from September, 2017

लिखने का मन करता है

बहुत कुछ है मन में लिखने का दिल करता है पर अगर मैंने बोला सच तो शायद मैं भी विद्रोही कहलाऊंगा मुझे भी मिलेगा देश निकाला तो शायद मैं भी तड़ीपार कहलाऊंगा बहुत कुछ है मन में कहन...

समकालीन संदर्भ में 'अंधेर नगरी' की प्रासंगिकता

व्यक्ति का मूल स्वभाव और प्रवृतियाँ हर युग में एक-सी ही रही हैं। सतयुग में भी कलयुगी स्वभाव वाले थे और कलयुग में भी सतसुगी स्वभाव वाले सज्जन मिल जाते है। अच्छे-बुरे लोगों का संख्यात्मक अनुपात कम-अधिक हो सकता है पर यह नहीं हो सकता कि किसी युग में उन्हें आधार बना कर लिखा गया साहित्य दूसरे समय या स्थान या स्थान के लिए अनुपयोगी हो । साहित्य तो कालजयी होता है और फिर भारतेन्दु के साहित्य का सन्दर्भ तो वही है जो हमारे आज का समय है। राजनीतिक स्थितियों अवश्य बदली है और इस कारण कुछ सामाजिक आर्थिक और धार्मिक आधार परिवर्तित हुए है - शेष सब कुछ वैसा ही है, इसलिए 'अंधेर नगरी' पूर्ण रूप से समकालीन संदर्भ में प्रांसगिक है, जिसे निग्नलिखित आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है - 1. राजनीतिक संदर्भ - भारतेन्दु ने चौपट्ट राजा के माध्यम से राजनीतिक भ्रष्टता, अदूर दृष्टि और कौशल हीनता को प्रकट किया था । वर्तमान समय में भी उनके राजनीतिज्ञ, सरकारी वर्ग के अधिकारी और उच्च पदों पर आसीन मठाधीश इसी वर्ग से सम्बंधित हैं। उनकें द्वारा किए गए मूर्खतापूर्ण कार्य भी गुमराह जनता के लिए आदर्श बन जाते हैं जनता ...